सारांश :- हमें परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिए जिन्होंने माता-पिता की गोद में हमें डाला | माता-पिता को सदैव सम्मान करना चाहिए जिन्होंने हमें यह दुनिया दिखाई, जीवन में कुछ कर गुजरने का मौका दिया | माता-पिता कभी अपने मुख से अपनी संतान को बदुआ नहीं देते लेकिन यदि उनकी अंतरात्मा पीड़ित हुई तो उनके अंतःकरण में जो दुःख और पीड़ा होती है वही माता-पिता की उपेक्षा करने वाले नालायक बच्चों को बदुआ से ज्यादा उनके जीवन में दुःख दाई सिद्ध होती है | एक मात-पिता अपना पूरा जीवन अपने बच्चों को पालने-पोषने और उन्हें अपने क़दमों पर खड़ा करने में लगा देते हैं | बच्चे बड़े होकर माता-पिता के त्याग और तपस्या को भुलाकर स्वयं की मेहनत और लगन को सर्वोपरि बताकर दुनिया को यह दिखाते हैं कि जो कुछ उन्होंने हांसिल किया है वह उनकी मेहनत और लगन का फल है इतना ही नहीं इसी गर्वपूर्ण विचार के चलते बच्चे अपनी अलग दुनिया में मस्त होकर बूढ़े हो चले माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं शायद उन्हें इसका भान ही नहीं हो पाता कि यह उचित नहीं है |
मूल शब्द :- प्यार, संस्कार, आदर्श, भावना, स्नेह, अनुशासन, पालन-पोषण आदि |
माता-पिता का स्नेह :- सब कहते हैं –“प्यार अंधा होता है |” जी हाँ यह सौ प्रतिशत सत्य है, क्योंकि हम सभी की माँ ने हमें बिना देखे ही प्यार करना शुरू कर दिया था | हमारी देखरेख धरती पर कदम रखने से पहले ही करने लग गई थी | जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ जब हम माँ के गर्भ में आये थे कुछ ही दिनों बाद माँ हमारे लिए चिंतित होने लगी थीं | उनका क्या खाना-पीना हमारे लिए उचित है और क्या उचित नहीं है,उस प्रकार से खाना प्रारंभ कर दिया था और अपने मन पसंद की अनेक ऐसी चीजों का त्याग कर माँ ने कर दिया था जो हम सब के लिए हितकर नहीं था | माँ जन्म से पहले ही अपने बच्चे से प्रेम करने लगाती है | इन बातों का एहसास तभी होता है जब हम स्वयं माता-पिता बनते हैं |
माता-पिता का जीवन :- हर माँ बाप अपने आप से ज्यादा अपने बच्चे को जीवन में वरीयता देते हैं | जब कभी बच्चा थोडा भी सर्दी-जुकाम से भी बीमार होता है तो माँ का कलेजा मुँह को आ जाता है | वह बच्चे की तीमारदारी में सारी सारी रात जाग कर चारपाई के पास बैठकर गुजार देती है | जब कभी बच्चा रात में बिस्तर गीला कर देता है तो माँ खुद गीले बिस्तर में लेटकर उसे सूखे बिस्तर पर सुलाती है | इतना ही नहीं वह अपने लिए भगवान से कुछ न माँगने वाली माँ साल भर में न जाने कितने व्रत अपने जान के टुकडे बच्चे की लंबी आयु के लिए रखती है | इसी तरह एक पिता दिन रात कठिन मेहनत करके अपने बच्चे केलिए वह सब कुछ करना चाहता है जो कभी उसे उसके बचपन में नहीं मिल सका था | पिता अपने बच्चे की हर ख्वाहिस पूरा करना चाहता है | माता-पिता की कोशिश रहती है कि वे अपने बच्चों को हर वो चीज मुहैया करवाएं, जो उन्हें हासिल नहीं हुई। चाहे वह अच्छे स्कूल में पढ़ाई हो, या वीडियो गेम्स, आलीशान बर्थडे पार्टी हो या विदेश की सैर। बच्चों को बिना मांगे बहुत कुछ मिल रहा है और बिना चाहे मिल रहा है | आज के हर माता-पिता अपने बच्चें के लिए वे अपने स्वास्थ पर ध्यान न देते हुए अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए सामर्थ्य से ज्यादा काम करता है | वह सोचता है कि उसका बच्चा पढ़ लिखकर एक लायक इंसान बन सफल जीवन बिता सके | एक माता-पिता कभी अपने बच्चे को इस लिए नहीं पालते-पोषते कि बच्चे बड़े होकर उनको पैसा कमाकर दें | उनकी मंशा बस एक ही होती है कि, मेरे बच्चे के जीवन में कभी कोई कष्ट न आए उसे इस काबिल बना दूँ कि जीवन की हर घड़ी का सामना वह खुद कर सकने में सक्षम हो |
ऐसे में एक बच्चे का माता-पिता के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए ? जब वह एक सक्षम इंसान और सभ्य नागरिक बन जाए |
बच्चों का कर्तव्य :- मेरी समझ से दोस्तों एक माता-पिता को कभी आपका पैसा नहीं चाहिए उन्हें तो बस आपका मुस्कुराता हुआ चेहरा चाहिए | वे साल-साल भर आपका इंतजार करते रहते हैं क्योंकि उन्हें आपका स्नेह और प्यार चाहिए | आज संसार में यदि हमारा कुछ भी अस्तित्व है या हमारी इस जगत में कोई पहचान है तो उसका संपूर्ण श्रेय हमारे माता – पिता को ही जाता है | कितने कष्टों को सहकर माता पुत्र को जन्म देती है, उसके पश्चात् अपने स्नेह रूपी अमृत से सींचकर उसे बड़ा करती है । माता-पिता के स्नेह व दुलार से बालक उन संवेदनाओं को आत्मसात् करता है जिससे उसे मानसिक बल प्राप्त होता है । हमारी अनेक गलतियों व अपराधों को वे कष्ट सहते हुए भी क्षमा करते हैं और सदैव हमारे हितों को ध्यान में रखते हुए सद्मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते हैं । पिता का अनुशासन हमें कुसंगति के मार्ग पर चलने से रोकता है एवं सदैव विकास व प्रगति के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है । यदि कोई डॉक्टर, इंजीनियर व उच्च पदों पर आसीन होता है तो उसके पीछे उसके पीछे माता-पिता का त्याग और बलिदान तथा उनकी प्रेरणा शक्ति और उनकी ईश्वर से की गयी प्रार्थना का प्रतिफल ही होता है | यदि प्रारम्भ से ही माता-पिता सही सीख और प्रेरणा न प्रदान करते तो संभवत: समाज में उसे वह प्रतिष्ठा व सम्मान प्राप्त नहीं होता । हम जीवन पथ पर चाहे किसी भी ऊँचाई पर पहुँचें हमें कभी भी अपने माता-पिता के सहयोग, उनके त्याग और बलिदान को नहीं भूलना चाहिए । हमारी खुशियों व उन्नति के पीछे हमारे माता –पिता की तपस्या मन्नतें और कठिन त्याग निहित होता है तभी तो किसी ने कहा है :- “बाढें पुत्र पिता के धर्मा, खेती उपजई अपने कर्मा |” हर माता-पिता की सदैव यही हार्दिक इच्छा होती है कि पुत्र बड़ा होकर उनके नाम को गौरवान्वित करे । अत: हम सबका उनके प्रति यह दायित्व बनता है कि हम अपनी लगन, मेहनत और परिश्रम के द्वारा उच्चकोटि का कार्य करें जिससे हमारे माता-पिता का नाम गौरवान्वित हो हमें सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि हमसे ऐसा कोई भी गलत कार्य न हो जिससे उन्हें लोगों के सम्मुख शर्मिंदा होना पड़े । आज की भौतिकवादी पीढ़ी में विवाहोपरांत युवक अपने निजी स्वार्थों में इतना लिप्त हो जाते हैं कि वे अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा तो दूर अपितु उनकी अवहेलना और उपेक्षा करना प्रारंभ कर देते हैं । यह निस्संदेह एक निंदनीय कृत्य है । उनके कर्मों व संस्कार का प्रभाव भावी पीढ़ी पर पड़ता है । यही कारण है कि समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है । आज के परिवेश में टूटते घर-परिवार इसी दृष्टिकोण का दुष्परिणाम हैं | हमारी संस्कृति “मातृदेवो भव, पितृदेवो भव” वाली वैदिक अवधारणा को एक बार फिर से प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है ताकि हमारे देश का गौरव अक्षुण बना रहे । हमारे लिए जिन कष्टों का सामना हमारे माता पिता करते हैं उसका वर्णन करना नामुमकिन है। माता-पिता अपने औलाद की परवरिस विना किसी स्वार्थ के करते हैं और ता उम्र उनकी यही अभिलाषा होती है कि, मेरी औलाद सदा सकुशल और प्रसन्न रहे |
निष्कर्ष :- मेरे प्यारे दोस्तों मेरा अपना मानना और जीवन का अनुभव है कि, यदि आपके माता-पिता आपसे प्रसन्न हैं तथा उनका आशीष आपको मिल रहा है तो दुनिया की कोई ताकत आपका कुछ नहीं बिगाड सकती है | गलती से भी अनजाने में भी कभी माता-पिता का दिल नहीं दुखाना चाहिए | बल्कि जब भी आप उनसे मिलें उनके गले लगें और आई लव यू पापा/मम्मी जरूर बोलें उनके पैर छुए | यकीन मानिए उनके मुस्कुराते चेहरे के तेज और अंतरात्मा से निकालने वाले आशीष से आप दिन-प्रतिदिन जीवन के पथ पर अग्रसर होते रहेगें और निरंतर बुलंदियों को छूते जायेगें | एक माता-पिता को आपके धन-दौलत से प्यार कतई नहीं होता उन्हें तो आपसे प्यार होता है | उन्हें आपका पैसा नहीं बल्कि आपसे थोड़ा प्यार और आपके कीमती समय में से थोड़ा सा समय तथा सम्मान चाहिए, उन्हें इससे वंचित न करें | आपके माता-पिता आपकी एक प्रकार की धरोहर हैं उनका ख्याल रखें क्योंकि “दुनिया में सब कुछ फिर से प्राप्त किया जा सकता है किन्तु माता-पिता और सहोदर भ्राता नहीं |”
अत: हम सब को माता-पिता की सेवा करनी चाहिए और यही संस्कार हमें अपने बच्चें में डालने चाहिए | यह हमारी भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति की धरोहर है, जिसे आने वाली पीढ़ी तक पहुँचाना हम सभी का पुनीत कर्तव्य है तभी हमारा जीवन सफल होगा |
सन्दर्भ ग्रन्थ :-
By Krishna Kumar Sharma
Leave A Comment